Tuesday, August 14, 2012

Yeh Desh Mehkna Hai




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Friday, January 13, 2012

Jeevan-Saathi

जीवन साथी 

जीवन नहीं है साथी, संस्कार की डगर है,
चलना जरा संभल के, परमात्मा का यह घर है,
 
शादी-विवाह का बंधन, संस्कार प्रबल होता,
मनमती  और कलह से, जीवन तिरष्कृत होता,

जिस उचंग व निष्ठां से, शादी रचाई हमने,
मन, वचन व कर्म से, सपने सजाये हमने,

ऐ है वक्त की बलिहारी, कोई न संग होता,
जीवन साथी ही हर डगर, मेरे मन का मीत होता,

समझे जरा ह्रदय में, कोई बैर भाव न होता,
एक-दूजे के दिल में, सारा जहाँ है होता,

मनमती को हटाकर, सोचें जरा ह्रदय में,
निर्वस्त्र है यह जीवन, संग दिल से ढका है तन,

तेरे प्यार की कहानी, है दिल की जवानी  मेरे,
फिर क्या कसूर मेरा, क्यों ह्रदय पीर मेरे,

मैंने कहाँ की है गलती, मैंने कहाँ तीर छोड़ा,
तेरा ह्रदय  भेदा ऐसा, मन का मोती तोडा,

मुझे माफ़ कर दे साथी, जीवन को साथ ले लो, 
मुझे ह्रदय से लगा लो, परिणय की  रात दे दो,

मैंने भूल में भी तेरा, कभी-कहीं दिल है तोड़ा,
मुझे शमा कर दो दिल से, दिल संस्कार का हिंडोला,

एक दूजे को बने हम, फिर ऐसी क्या है जल्दी, 
तेरे तन-बदन चढ़ी है, तेरे तन-बदन की हल्दी,

इस हल्दी की महक को, संस्कार है निभाते,
परिवार है यह तेरा, इसे दिल में है सिहाते,

संकल्प, सत्संग, सदाचार, संस्कार का ही अंग है,
जीवन का साथ निभाओ, यही जीवन का सत्संग,

सत्संग के विरह की, गति-मति न कोई जाने,
इस सत्य के वचन को, जीवन से कम न जानें,

तेरे ज्ञान-विज्ञानं की, यही तो परीशा है, 
जिसने विवेक साधा, यह उसकी कल्पना है,

इस कल्प वर्षस   को, कभी मुरझाने न देना,
जीवन है देने प्रभु की, जीवन भर साथ देना,

जीवन-साथी ही जीवन में, इश्वर का रूप होता, 
राधा व श्याम के रूप में, जीवन का स्वरुप होता,

जीवन नहीं है साथी, संस्कार की डगर है,
चलना जरा संभल के, परमात्मा का यह घर है, 

                                                              दिनेश कुमार वर्मा 'सारथी'





 

Saturday, January 7, 2012

Happy New Year 2012


* नूतन वर्ष की हार्दिक सुब्कामनाये *

"तुम तो कह-कहे हो, उन हसींन वादियों के, 

जहाँ तरनुम में, खुदा का दीदार होता है"

*************


नव वर्ष में पहले दिन से,
जीवन में संकल्प करें,
प्रकृति प्रदत उपहारों का,
संरक्षण, संचयन करें,
ह्रदय बरसाएं निष्ट भावना,
हर प्राणी से प्रेम करें,
इर्षा और अहम् की खातिर,
नहीं किसी से बैर करें,
पाप मुक्त हों कर्म हमारे,
यश, वैभव, श्री, शीश धरें,
मन सुन्दर हो, तन सुन्दर हो,
सत्य आचरण वरण करें,
नव वर्ष हो मंगलकारी ,
सिद्धि विनायक मदद करें,
रिद्धि -सिद्धि वैभव के दाता,
हर संकट को दूर करें,

Wednesday, January 26, 2011

"नजरिया"

नजरिया अपना-अपना


नजरिया अपना-अपना
पूर्णिमा की रात
स्वर्णिम किरणें चाँद की
करोड़ों वर्ष में एक जैसी,
क्या कोई मिलावट नज़र आती है
प्रतिदिन सूर्योदय की छवि का नज़ारा
देता है असीमित ऊर्जा
मानव को इस प्रकृति को पर्यावरण को
करोड़ों वर्षों से एक ही तरह
समय बद्ध कार्यक्रम
क्या कोई मिलावट नज़र आती है
मानव को पैदा किया
मानविया दृष्टिकोण दिया
असीमित प्यार दिया, मानव से मानव को
क्या कोई मिलावट नज़र आती है

मिलावट का पहलू प्रारम्भ होता है
संस्कारों से 
क्या हम चल पा रहें हैं उन संस्कारों पर
जो हमने अपने पूर्वजों से ग्रहण किये
क्या आप जानते है की हमारे पूर्वज कौन थे
हमारे वंशज कौन है
यदि नहीं ज्ञान इतना
तो समझ लो की हमारे पूर्वज
रहे होंगे सूरज व चाँद जैसे
जिसमे कितना भी ज़हर घोला हो मानव
वह सदैव प्रदान करते है एक सी तपिश
व एक सी शीतलता
तो क्यों छोड़े हमने उनके संस्कार,
कहाँ से आई मिलावट
कहाँ से आया भ्रष्टाचार
समय से क्यों नहीं उठाया कदम आज माथा क्यों ठोंक रहे हो
और कब तक ठोंकते रहोगे
क्या अंत है कहीं इसका
शर्म करो मानवीय संवेदनाओं को आहत मत होने दो
क्यों की जितना खोदोगे
दागदार होते जाओगे
पहले देखो कितने खुनी छींटे हैं मेरे दामन में
चर्बी क्या चीज़
कितने इंसानों का खून पीया है मैंने,
क्या करने आया हूँ
क्या कर रहा हूँ
क्या मेरे करने से मानव का कल्याण है
या मानव कल्याण की आड़ में मेरा कोई स्वार्थ है,
शिक्षा जगत से जुड़े लोगों से
एक प्रश्न है विकराल मेरे
क्या जो मिलावट आज शिक्षा जगत में है
वह चर्बी काण्ड से कम है
जब होगा खुलासा उसका
तो क्या बच पायेगा कोई जीवन उससे
आहत हुए बिना
शिक्षा जगत के बड़े-बड़े हौन्दों पर आसीन मानव
सोचे ज़रा इस सच पर की
क्या शिक्षा का व्यवसायीकरण उचित है,
यदि उचित है
तो क्यों नहीं बाँधी जाती पाड़ इसकी
धन कमाने की भूख में मदहोश है
हर व्यक्ति
अच्छे-बुरे का ज्ञान होने पर भी
जीवित मक्खी निगल रहा है वह
मात्र लोभ-लालच व
अपार धन कमाने की इच्छा में
किन्तु वह धन किसके लिए
जिनके लिए कमा रहे हो धन
जब वे ही न रहेंगे इस धरती पर
चर्बी कांड हो या अनैतिकता का कोई कुचक्र
सभी में दोषी है मानव
जो इस कलियुग में महामानव बनाने की होड़ में है
महामानव बनना है तो
सीख लो अपने पूर्वजो से,
जिन्होंने पैदा किया महात्मा बुद्ध
स्वामी विवेकानंद जैसे महामानव इस धरती पर
यदि बीड़ा उठाना है
इस देश को समृद्धिशाली बनाने का
तो खुद को उठाना होगा नैतिकता के चरम बिन्दु तक
और यह तब तक संभव नहीं है
जब तक नष्ट नहीं करेंगे
अपने आत्मिक स्वरुप से भ्रष्टाचार,

अनैतिकता की जननी है भ्रष्टाचार
हर काण्ड की जड़ है लोभ व भ्रष्टाचार
मानवीय संवेदनाओं से मत खेलो
चहूँ और आग ही आग है
जल जायेंगे उसी तरह
जैसे अभिमन्यु फँस गए थे चक्रव्यूह में
आओ बदलाव लायें अपनी कार्यशैली में
कुछ न हासिल होगा
मानवीय संवेदनाओं की होली जलाने से
जलाना है तो नष्ट करें अपनी बुरी आदतों को
रोकें आने वाली पीड़ी को
फास्ट फ़ूड व विविध अनैतिक पकवानों से
लगाम लगा दे जबान को की
स्वाद स्वाद में नष्ट न करें अपना जीवन
मिलावट और भ्रष्टाचार के इस दौर में,
जीवन कम स्वाद अधिक है
स्वाद से जीना है जीवन
तो भ्रष्टाचार छोड़ना  होगा
रोकना है षड्यंत्रों को
तो खुद को रोकना होगा
षड्यंत्रों में सम्मिलित होने से
एक उंगली उठाने पर तीन उंगली अपनी ओर उठती है
यह सोच लो की मानवीय धरा पर 
अमानवीय बोझा भारी है
आवश्यकता है चन्द ऐसे लोगों की
जो बचा सकें इस मानवीय धरा को
असीमित अमानवीय बोझ से
आओ आगे बढें
फूंके अनैतिकता में नैतिकता का शंखनाद
संकल्प ले दूर करने का भ्रष्टाचार खून से
अन्यथा  खडा हो जाएगा यह महादैत्य
रक्तबीज के रूप में
फिर करोगे पूजा अर्चना
उस महादैत्य को नष्ट करने के लिए
जगत जननी माँ की
और माँ अपने भक्तों की रक्षा के लिए
नष्ट तो करेंगी उस महादैत्य,
रक्तबीज को
किन्तु सोचो कौन है वह रक्तबीज,
जिसके मरने के बाद
कौन जीवित रहेगा इस धराधाम पर
तलाश करो दोषी को
दोषी कौन है अपने ह्रदय से पूछो
जवाब मिलेगा- "मैं",
तो फिर देर किस बात की
नष्ट कर डालो अपने ह्रदय से
भ्रष्टाचार रुपी "रक्तबीज" को
बचा लो इस धरा को,
अमानवीय बोझ से.


बचा लो इस धरा को,
अमानवीय बोझ से !!






"मतदाता दिवस"

"मतदाता दिवस"


भारत का नागरिक हूँ,गौरव की बात है,
मतदाता हूँ भारत का, वोटर आइ डी हाथ है
              मतदाता दिवस तो अधिकार दिवस है,
             यह राष्ट्र की संरचना का मौलिक दिवस है
पहचान पत्र ही तो मेरी पहचान है,
पहचान को छिपाना दुष्टों का काम है,
           इस देश के युवाओं मत के अर्थ को समझो,
           अधिकार की सीमा व अपने दर्द को समझो,
इतिहास गवाह है सरकार जो बनती
मतदाता के अधिकार की वैशाखी पर चलती,
         जानो ज़रा अधिकार को और उसकी सीमा को
         देशहित में मताधिकार को एक मत की कल्पना को,
पहचान पत्र से ही मतदाता बने हो
लोकतंत्र के इस देश के विधाता बने हो
        मतदाता दिवस तो विधाता का विधान है
        है असीमित शक्ति इसमें डगर गुमनाम है,
जान लो प्यारों तुम मताधिकार को
ईमान को निष्ठा को और राष्ट्र भाव को
          मतदाता तो इस देश का वह कद्रदान है
          भगवान् है वह देश का बड़ा भाग्यवान है,
जो ताकत खुदा में है वह खुद में समाहित है
अच्छे बुरे कर्मों का फल इसमें निहित है
          मत का प्रयोग न करना खुद से बेमानी है
          अधिकार को खोता है कायरता की निशानी है
जागो ज़रा जागो मेरे देशवासियों
पहचान लो खुद को खुद के इस्तकबाल को
          भ्रष्ट आचरण ने आज लुटिया डुबोयी है
          मत का प्रयोग ना करके हमने मानवता खोयी है
यदि नहीं सम्हालोगे भैया मौसम एसा बना रहेगा
मानव अत्याचार सहेगा मानवता का खून बहेगा
          लुच्चे गुंडे और लफंगे राज करेंगे हमरे ऊपर
          वोटर बकरी भेड़ बनेंगे महंगाई के जिन्न के ऊपर
दानवता का नंगा नाच नहीं सहेंगे इस जीवन में
पूर्ण विवेक से मतदान का अर्थ समझेंगे इस जीवन में
         हम विश्व की निगाह में निगेहबान बनेंगे
         आतंक और भ्रष्टाचार को हम जड़ से धुनेंगे
 सबसे बड़ी आबादी का यह अपना देश है
है सबसे बड़ा लोकतंत्र तगड़ा निवेश है
         भारत के नागरिक की यही पहचान है
         वोटर आई डी कार्ड ही देश की शान है.

Monday, December 13, 2010

"पौलिथिन अभिशाप है"

                                   पौलीथीन ने मेरे देश कू,
                                   ऐसो नरक बनायो है,
                                   वाहि में आटा, वाहि में गंदगी,
                                   वाहि में घी टपकायो है,
थूक दान और पीक दान में
पौलीथीन को इस्तेमाल करें,
छोरे इनकू सड़क पे बीनें,
सेकिंड को माल तैयार करें
                     
                             इतनी गन्दी पौलिथिन में,
                             मानव अपना धरम धरें,
                             विचार करें वो छूत-अछूत कौ,
                             खान- पान  बाही में धरें,
सबरे सीवर चोक भए,
नालन में कहर बरपायो है,
जा पॉलीथिन ने तो भैया,
देश कू नरक बनायो है,
                                दूध, दही और मक्खन लेऊ,
                                चाहै लेऊ पशु आहार है,
                               खाली हाथ चलिंगे ऐसे,
                               जैसे काऊ पे करज उधार है,
जेब काट रे हैं सब तेरी,
सभी में अत्याचार है,
सड़ी-गली सब चीज धर दी,
पैकिंग जैसे कोई उपहार है,
                              साग लेऊ चाहे लेऊ किराना,
                              पहलों एकु सवाल है,
                              पौलिथिन यदि नहीं है तो पै,
                             माल तेरो बेकार है,
लै लेऊ प्रण अब अपने मन में,
खाली हाथ नहीं जाएँगे,
एक नहीं अब दो-दो थैला,
संग अपने ले जाएँगे,
                          सब सामन छांट के लेंगे,
                          हाथ नहीं लगवाएँगे,
                          पौलीथीन में जो बेचेगा,
                         उसका उपहास उडाएँगे,
 पौलिथिन को बीन के घर में,
उसको नष्ट कराएंगे ,
बच्चा, बड़े सबंकूं घर में ,
ऐसी सीख सिखाएंगे,
                        उन आशीष हम धन्य होएँगे,
                       जो हम पर उपकार करिंगे
                       बंदी कर के पौलिथिन कू
                       सबको बेडा पार करिंगे,
 नगर-गामवासी सब लेऊ,
 पौलिथिन बेकार है,
 जाको उपयोग नाहे करिंगे,
 या बीमारी को आधारू है,
                               टोल के टोल बनायके चल्दौ,
                               हाथ जोड़ के ये गुहार है,
                               पौलिथिन जापे तुम देखो,
                               करौ बकौ तिरस्कार है,
  ऐसी अलख जगाए देऊ भैया,
  जे तो एक उपकार है,
  पौलिथिन है भ्रष्ट आचरण,
  जा को नाय कोई सार है,
                            भैया,बहन, मात तुम सुन लेऊ,
                           पौली-पैक नहीं लाएँगे,
                           करिंगे विरोध शालीनतापूर्वक ,
                           धरती को स्वर्ग बनाएँगे,
 घर-घर जाकर करो जागरण,
 अब जागा विश्वास है,
 बहुत लुट लिए, अब ना लुटेंगे,
 पौलिथिन अभिशाप है.

Thursday, October 21, 2010

devta ki paribhasha..



इंसान की इंसानियत को,
जगाने में सुख मिलता है,
          वे हैवान हैं जिनको प्राणी को,
          सताने में सुख मिलता है.
दुश्मन को दोस्त बना लो.
यही प्यार की पराकाष्ठा है
         इसी में आत्मा का सुख है,
         यही ईश्वरीय कल्पना है.
चाहते हो दीदार सुख का,
तो सब एक हो जाओ ,
          भगवन की भक्ति में सब,
          मिलकर तल्लीन हो जाओ,
यही अमृत की वर्षा है
समुद्र मंथन भी यही है,
          वही सब देव हैं जिनमे,
          सहनशीलता बसी है .